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Tuesday, April 21, 2015
Apne
haato se khilati hai maa, Takiya dekh kar humko sulati hai maa, Hum ek
pal bhi louta nahi sakte, Apna har pal lutati hai 'Maa'. अपने हाथोँ से खिलाती है माँ, तकिया देख कर हमको सुलाती है माँ, हम एक पल भी लौटा नहीँ सकते, अपना हर पल लुटाती है 'माँ'
14 comments:
Bhavpurna post..
सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
संजू जी ,आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है। सभी तरह के संदेशों को एक ही जगह उपलब्ध कराने का अच्छा प्रयास किया है आपने। बधाई।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
ज्योति जी और शांति जी मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद
वाह बहुत ख़ूब !
बहुत बहुत आभार...
Very nice post ...
सोलह आने सच है। हम मां का एक पल भी नहीं लौटा सकते। अच्छे विचार प्रस्तुत करते हैं आप। आपके अच्छे विचारों के लिए मेरा सलाम।
बहुत ही सुन्दर
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
Satya vachan...
माँ आखिर माँ ही होती हैं.उसके जैसा कोई नही.
वाह बहुत ख़ूब
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